Raskhan, raskhan ke dohe

raskhan ke dohe, raskhan

( रसखान के दोहे )

रसखान के दोहे 🙁 raskhan ke dohe )

1. मानुष हौं तो वही रसखानि, बसों बृज गोकुल गोकुल गांव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो, चलो नित नंद की धेनु मंझारन।।
पाहन हो तो वही गिरि को, जो धरियो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खत्म हो तो बसेरों करौ, मिली कालिंदी कूल कदंब की डारन।।


अनुवाद :-

रसखान कवि कहते हैं कि हे प्रभु मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म लूं तो। मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वाले के मध्य निवास करूं। यदि मैं पशु बनू तो नंद जी के गायों के बीच विचरण करूं। यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनू जिसे आपने इंद्र का घमंड चूर करने के लिए और जल मग्न होने से गोकुल गांव की रक्षा की थी। यदि मैं पक्षी योनि में भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करूं। 


2.  आजु गई हुती भोर ही हौं, रसखान रई बहि नंद के भौंनहिं।
वाको जियौं जुग लाख करोर, जसुमति को सुख जात कह्यौ नहिं ।।
तेल लगाई लगाई के अंजन, भौंहैं बनाइ बनाइ डिठौनहिं।
डारि हमेलनि हार निहारत बारत ज्यौं पुचकारत छौंनहिं ।।


अनुवाद :-

एक गोपी दूसरे गोपी से कहती है कि हे सखी! श्री कृष्ण के प्रेम में मग्न हुई मै नंद जी के घर गयी थी। मेरी कामना है कि उनका पुत्र श्री कृष्ण लाखों-करोड़ों युगो तक जीवित रहे। यशोदा के सुख के बारे में कुछ कहते नहीं बनता है अर्थात उनको सुख की प्राप्ति हो रही है। वह अपने पुत्र का सिंगार कर रही थी। वे श्रीकृष्ण के शरीर में तेल लगाकर आंखों में काजल लगा रही थी। उन्होंने उनकी भौहैं संवार कर बुरी नजर से बचाने के लिए माथे पर टीका लगा दिया था। वे उनके गले में सोने का हार डालकर और एकाग्रता से उनके रूप को निहार कर अपने जीवन को न्योछावर कर रही थी और प्रेम आवेश में बार-बार अपने पुत्र को प्यार कर रही थी।



3. धूरि भरे अति शोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरे अंगना, पग पैंजनी बाजति पीली कछोटी ।।
वा छवि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी। काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ।।


अनुवाद :-

इस काव्य में एक गोपी दूसरे गोपी से कहती है कि है सखी। श्याम के कपड़े धूल से भरे हुए हैं और अत्यधिक शोभायमान हो रहे हैं। वैसे ही उनके सिर पर सुंदर चोटी सुशोभित हो रही है। वे खेलते और खाते हुए अपने घर के आंगन में घूम रहे हैं।उनके पैरों में पायल बज रही है और वह पीले रंग की छोटी सी धोती पहने हुए हैं रसखान कवि कहते हैं कि उनके उस सौंदर्य को देखकर कामदेव भी उन पर अपनी कोटि-कोटि कलाओं को न्योछावर करता है। हे सखी! उस कौवै के भाग्य का क्या कहना, जो कृष्ण के हाथ से माखन और रोटी छीन कर ले गया। भाव्या है कि कृष्ण की झूठी माखन रोटी खाने का अवसर जिसको प्राप्त हो गया वह धन्य है।
आपका हमारी पोस्ट पर आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। 

Leave a Comment